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पुरुषों को घर में रहने से अच्छा है वन चले जाएं, जानें चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा

श्लोक में चाणक्य ने घर में स्त्रियों की होने की अहमियत को बताया है. परंतु चाणक्य के अनुसार स्त्री का घर में होना बेहद जरूरी होता है। लेकिन अगर पत्नी बात-बात पर क्लेश करती है जिससे परिवार में एकजुट होने की भावना खत्म हो जाती है ऐसे घर में रहने की बजाय वन चले जाना अच्छा होगा।  
 
पुरुषों को घर में रहने से अच्छा है वन चले जाएं, जानें चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा

Khelo Haryana, New Delhi: कुछ रिश्ते बहुत नाजुक और जटिल होते हैं, उन्हीं में से एक है पुरुष का अपनी मां और पत्नी के साथ का रिश्ता. अक्सर शादी के पहले पुरुष अपनी मां के बेहद करीब होते हैं. मां का आंचल ही उनकी सबसे बड़ी खुशी होती है. वह हर छोटी-बड़ी बात मां से शेयर करते हैं. वहीं शादी के बाद जब पत्नी का जीवन में प्रवेश होता है तो जिंदगी में कई तरह के बदलाव आते हैं. चाणक्य कहते हैं कि इन दोनों के सम्मान, प्यार को बरकरार रखने वाला सुखी जीवन जीता है. वहीं चाणक्य ने एक श्लोक में कहा है कि किन पुरुषों को घर छोड़कर वन में 

माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी।
अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥

श्लोक में चाणक्य ने घर में स्त्रियों की होने की अहमियत को बताया है. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि स्त्री का घर में होना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि बचपन से युवावस्था तक मां व्यक्ति का मार्गदर्शन करती है. उसे सही रास्ते पर चलने की सीख देती. ममता की छांव मकान को घर बनाती है. बिना माता के घर विरान हो जाता है. चाणक्य कहते हैं कि ऐसे घर में रहने से अच्छा है वन में चले जाएं, जहां आप प्रकृति माता की गोद में तो सुकून महसूस कर सकते हैं.

घर में रहने से अच्छा है वन चले जाएं
चाणक्य ने जीवन में पत्नी की भूमिका का भी जिक्र किया है. वह कहते हैं कि अगर मां ना हो और सौम्य स्वभाव की पत्नी भी घर में सुख शांति की स्थापना कर सकती है. लेकिन अगर पत्नी बात-बात पर क्लेश करती हो, जिसमें घर-परिवार को एकजुट रखने का भाव न हो. ऐसे घर में रहने की बजाय वन को चले जाएं. आज के परिपेक्ष में बात करें तो व्यक्ति को वहां रहना चाहिए जहां उसे मानसिक शांति, सुख मिले. चाणक्य ने कहा है कि घर तभी तक रहने योग्य है जब तक उसमें शांति और आपसी तालमेल हो. अगर घर में साथ रहें और पशुओं की भांति लड़ते रहें तो जंगल में रहने में क्या बुराई है.