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Railway Station: ये है भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन, यहां से पैदल विदेश जा सकते हैं लोग

क्या आपको प‌ता है भारतीय रेलवे का अंतिम रेलवे स्टेशन कहां है। इस रेलवे स्टेशन से पैदल चलकर ही विदेश पहुंचा जा सकता है। चलिए जानते है।
 
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Khelo Haryana, New Delhi क्‍या आप जानते हैं कि अपने इस देश में कई ऐसे इलाके हैं, जहां से आप पैदल ही विदेश जा सकते हैं. ये सीमावर्ती इलाके हैं, जहां से आराम से आप अपने कदम बढ़ाते हुए बड़े आराम से विदेशी पहुंच जाएंगे.

नॉलेज न्यूज़ के इस सेगमेंट में अभी तक आपने भारत के आखिरी गांवों के बारे में सुना होगा. इस कड़ी में उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ धाम से सटा माना गांव और नॉर्थ ईस्ट के एक गांव को देश का आखिरी गांव माना जाता है.

लेकिन आज बात देश के आखिरी रेलवे स्टेशनों की जिनमें से एक बिहार के अररिया जिले में है, तो दूसरा पश्चिम बंगाल (West Bengal) में पड़ता है.

अररिया के जोगबनी स्टेशन को देश का आखिरी रेलवे स्‍टेशन इसलिए माना जाता है क्योंकि यहां ट्रेन से उतर कर आप पैदल ही नेपाल (Nepal) में दाखिल हो सकते हैं.

वहीं पश्चिम बंगाल का सिंहाबाद स्टेशन भी देश का आखिरी स्‍टेशन है. इसी तरह दक्षिण भारत में जहां से देश की समुद्री सीमा शुरू होती है, वहां के एक स्टेशन को भी देश का आखिरी स्टेशन कहा जाता है.

भारत का आखिरी रेलवे स्टेशन

पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हबीबपुर इलाके में बना सिंहाबाद स्टेशन भारत का आखिरी सीमांत स्‍टेशन है, यह बांग्‍लादेश की सीमा के नजदीक है.

अंग्रेजों के शासन के दौरान बना ये स्‍टेशन लंबे समय तक वीरान रहा. आज भी इसकी तस्‍वीर बहुत ज्यादा नहीं बदली है. आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ तो उसके बाद से इस स्टेशन पर काम बंद हो गया और यह स्‍टेशन लंबे समय तक सूनसान और वीरान पड़ा रहा.

साल 1978 में जब इस रूट पर मालगाड़ियां शुरू हुईं, तब जाकर कहीं यहां रेल इंजन की सीटियों की आवाज गूंजी. ये गाड़ियां पहले भारत से बांग्‍लादेश आया-जाया करती थीं.

वहीं करीब 11 साल पहले यानी नवंबर 2011 में एक पुराने समझौते में संशोधन करने के बाद भारत के एक और पड़ोसी देश नेपाल को भी इस रूट में जोड़ लिया गया.

1978 में गूंजी रेल की सीटी

सिंहाबाद, रेलवे स्टेशन बांग्लादेश के इतना नजदीक है कि लोग कुछ किमी दूर बांग्लादेश पैदल घूमने जा सकते हैं. इस रेलवे स्टेशन का अधिकतम इस्तेमाल मालगाड़ियों के संचालन के लिए होता है.

यहां से अब मैत्री एक्सप्रेस नाम से दो यात्री ट्रेनें भी गुजरती हैं. इस स्टेशन पर सिग्रल, संचार और स्टेशन से जुड़े उपकरणों में भी बहुत ज्यादा तकनीकि बदलाव नहीं हुआ है.

आज भी यहां सब कुछ पुराने ढर्रे पर चल रहा है. रेलवे के कर्मचारी भी यहां नाम मात्र के ही हैं.