धन व स्त्री से पहले व्यक्ति को किसकी रक्षा करनी चाहिए, जानें चाणक्य नीति

Khelo Haryana, New Delhi: जिस तरह से विज्ञान में कई सिद्धांतों की खोज की जाती है और उनकी पुष्टि बार-बार किए गए प्रयोगों से एक समान प्राप्त परिणाम से होती है, ठीक इसी तरह नीति शास्त्र भी एक सुनिश्चित परंपरा है।
इसके परिणाम भी हर स्थिति-परिस्थिति में एक समान हैं। इसलिए आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में विज्ञान यानी साइंस कहा है। वे नीति शास्त्र के ज्ञान के द्वारा सर्वज्ञ होने की बात कहते हैं। यहां सर्वज्ञ होने का अर्थ अतीत, वर्तमान और भविष्य का विश्लेषण करने की क्षमता प्राप्त करना है।
आचार्य चाणक्य एक महान अर्थशास्त्री, राजनीति के वेत्ता और कूटनीतिज्ञ होते हुए भी महात्मा थे। वे सभी प्रकार की भौतिक उपाधियों से परे थे। जानें चाणक्य नीति के पहले अध्याय में बताया गया है कि व्यक्ति को स्त्री व धन से पहले किसकी रक्षा करना चाहिए।
चाणक्य कहते हैं कि किसी कष्ट अथवा आपत्तिकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए। धन खर्च करते भी स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन स्त्रियों और धन से भी आवश्यक है कि व्यक्ति को खुद की रक्षा करनी चाहिए।
तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया।
येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते।।
चाणक्य कहते हैं कि नीति शास्त्र को पढ़कर कोई भी व्यक्ति दुनियादारी और राजनीति की बारीकियां समझकर सर्वज्ञ हो जाएगा। यहां सर्वज्ञ से अर्थ चाणक्य का ऐसी बुद्धि से है जिससे व्यक्ति में समय के अनुरूप हर परिस्थिति में कोई भी निर्णय होने की क्षमता आ जाए। जानकार होने पर भी अगर समय पर निर्णय नहीं लिया तो जानना-समझना सब बेकार है। अपने हितों की रक्षा भी तो तभी संभव है।